युवा शक्ति और स्कूली बच्चों के साथ जल आत्मनिर्भर भारत की ओर: आर्द्रभूमियों व तकनीक का संगम”

युवा शक्ति और स्कूली बच्चों के साथ जल आत्मनिर्भर भारत की ओर: आर्द्रभूमियों व तकनीक का संगम”

गरीब दर्शन / अजय सहाय

जल आत्मनिर्भर भारत 2047 के लक्ष्य को साकार करने में स्कूली बच्चों और युवाओं की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि वे समाज का वह जागरूक वर्ग हैं जो जल संरक्षण, जलवायु परिवर्तन, और पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन के प्रति सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं, इस दिशा में उन्हें वैज्ञानिक तथ्यों, डेटा, और नीति आधारित जानकारी से लैस करना आवश्यक है ताकि वे जल संकट की गंभीरता को समझ सकें और समाधान का हिस्सा बन सकें, भारत में प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता 1951 में 5177 घनमीटर थी जो घटकर 2025 में लगभग 1400 घनमीटर रह गई है और 2047 तक इसके 1000 घनमीटर से नीचे जाने की आशंका है जिससे भारत ‘जल संकट’ की श्रेणी में आ जाएगा, बच्चों को यह भी समझाना आवश्यक है कि भारत में हर वर्ष लगभग 4000 बिलियन क्यूबिक मीटर (BCM) वर्षा जल गिरता है लेकिन इसमें से केवल 690 BCM सतही जल और 432 BCM भूजल के रूप में उपयोग हो पाता है जबकि शेष जल बहकर समुद्र में चला जाता है, इसलिए जल संचयन और संरक्षण की आवश्यकता को रेखांकित करना जरूरी है, स्कूली बच्चों और युवाओं को जल संरक्षण, भूजल पुनर्भरण, वर्षा जल संचयन, पारंपरिक जल स्रोतों जैसे तालाब, आहर-पइन, बावड़ी, झीलों के महत्व, जल प्रदूषण, ग्लेशियर पिघलाव, समुद्र स्तर वृद्धि (जो 1993 से 2023 तक औसतन 3.3 मिमी प्रति वर्ष बढ़ी है), और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए, इसके साथ ही, बच्चों को आर्द्रभूमि (Wetlands) के महत्व से भी परिचित कराना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि आर्द्रभूमियाँ जल संरक्षण, भूजल पुनर्भरण, बाढ़ नियंत्रण, जैव विविधता संरक्षण, कार्बन सिंक, और जलवायु संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, भारत में 757,060 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैली लगभग 7.5% भूमि आर्द्रभूमि है जो 90% जैव विविधता का आश्रय स्थल है, बच्चों को यह समझाना चाहिए कि आर्द्रभूमियों का संरक्षण जल आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य में महत्वपूर्ण योगदान देता है, क्योंकि आर्द्रभूमि जल को शुद्ध करने, मिट्टी की गुणवत्ता बढ़ाने, और स्थानीय जलवायु को संतुलित करने में सहायक होती है, साथ ही, युवाओं को बताया जाना चाहिए कि भारत में लगभग 43% आर्द्रभूमियाँ शहरीकरण, प्रदूषण, और अतिक्रमण के कारण संकट में हैं, जिससे भूजल स्तर गिर रहा है और जैव विविधता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है, उदाहरण स्वरूप, बेंगलुरु में 1800 से अधिक झीलें थीं जो घटकर मात्र 80 रह गई हैं और इसका परिणाम है कि वहां भूजल स्तर 500 फीट तक गिर चुका है, इसी तरह, दिल्ली में यमुना बाढ़ मैदान की आर्द्रभूमियाँ सिकुड़ रही हैं जिससे बाढ़ की घटनाएँ बढ़ी हैं, बच्चों और युवाओं को ‘रामसर साइट्स’ (भारत में 75 रामसर साइट्स, जो 13.3 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में फैली हैं) के महत्व से भी अवगत कराना चाहिए, राज्य सरकारें भी स्कूली बच्चों को जल संरक्षण से जोड़ने के लिए विभिन्न योजनाएँ चला रही हैं जैसे बिहार का ‘जल जीवन हरियाली अभियान’, उत्तर प्रदेश का ‘स्कूल वाटर क्लब’, महाराष्ट्र का ‘जलदूत कार्यक्रम’, राजस्थान का ‘मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान’, जिनके माध्यम से बच्चों को जल स्रोतों की देखभाल, जल गुणवत्ता की जांच, और वर्षा जल संचयन प्रणालियों में भागीदारी दी जा रही है, इसके साथ ही, डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग कर बच्चों और युवाओं में जल जागरूकता अभियान चलाना अत्यंत प्रभावी है क्योंकि डिजिटल माध्यम से संदेश व्यापक स्तर तक पहुँचाया जा सकता है, भारत सरकार और राज्य सरकारें ‘MyGov’, ‘Jal Shakti Abhiyan’ पोर्टल, ‘Catch the Rain’ ऐप, और सोशल मीडिया के माध्यम से बच्चों और युवाओं को जल संरक्षण अभियानों से जोड़ रही हैं, इसके अलावा, ‘UNICEF’, ‘TERI’, ‘CSE’ जैसी संस्थाएँ भी डिजिटल शिक्षा सामग्री, जल विषयक क्विज़, ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म, और वर्चुअल कार्यशालाओं के माध्यम से जल जागरूकता बढ़ा रही हैं, बच्चों को यह भी सिखाना चाहिए कि जलवायु परिवर्तन मानसून के पैटर्न को प्रभावित कर रहा है जिससे वर्षा का वितरण असंतुलित हो रहा है, 2023 में भारत में सामान्य से 6% कम वर्षा हुई थी जबकि पूर्वोत्तर भारत में 18% अधिक वर्षा दर्ज की गई थी, युवाओं को जल नीति, जल अधिकार, जल के निजीकरण, और जल न्याय जैसे मुद्दों पर भी जागरूक किया जाना चाहिए ताकि वे स्थानीय जल प्रबंधन समितियों में सक्रिय भूमिका निभा सकें, जल मेला, पोस्टर प्रतियोगिता, निबंध लेखन, जल दिवस आयोजन, जल रैली, और ड्राइंग प्रतियोगिता जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से बच्चों की भागीदारी सुनिश्चित की जा सकती है, इसके अलावा, ‘इको क्लब’, ‘जल योद्धा कार्यक्रम’, ‘स्कूल वाटर ऑडिट’, और ‘नेचर कैंप’ जैसी गतिविधियों के माध्यम से व्यवहार परिवर्तन संचार (BCC) को बढ़ावा दिया जा सकता है, युवाओं को तकनीकी ज्ञान जैसे GIS मैपिंग, जल गुणवत्ता परीक्षण, स्मार्ट वर्षा जल संचयन प्रणालियों के विकास, और स्टार्टअप इनोवेशन के माध्यम से जल क्षेत्र में नए समाधान खोजने हेतु प्रोत्साहित किया जा सकता है, डिजिटल प्लेटफॉर्म पर चलाए जाने वाले जल जागरूकता अभियानों में सोशल मीडिया चैलेंज, ऑनलाइन वेबिनार, डिजिटल पोस्टर, शॉर्ट वीडियो, और इन्फोग्राफिक्स का उपयोग कर जल संरक्षण का संदेश रोचक और प्रभावी ढंग से पहुँचाया जा सकता है, बच्चों को यह भी समझाया जाना चाहिए कि जल का विवेकपूर्ण उपयोग कृषि क्षेत्र में कैसे किया जा सकता है, क्योंकि भारत में कुल जल उपयोग का 80% कृषि क्षेत्र में होता है, ‘माइक्रो इरीगेशन’, ‘ड्रिप इरीगेशन’, ‘स्प्रिंकलर सिस्टम’ जैसी तकनीकों को अपनाने से जल की बचत की जा सकती है, भारत में 2020-21 में कुल जल मांग 1415 बिलियन क्यूबिक मीटर थी, जिसमें घरेलू उपयोग मात्र 7% था, इस आंकड़े से बच्चों को जल के महत्व और संरक्षण की आवश्यकता को समझाया जा सकता है, जल आत्मनिर्भर भारत 2047 के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सतत विकास लक्ष्यों (SDGs), विशेष रूप से लक्ष्य 6 (सभी के लिए स्वच्छ जल और स्वच्छता) के प्रति बच्चों और युवाओं को जागरूक करना आवश्यक है, इसके साथ ही, आर्द्रभूमियों, जलवायु परिवर्तन, और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के आपसी संबंधों को समझाकर उन्हें प्रकृति संरक्षण की ओर प्रेरित किया जा सकता है, इस प्रकार, स्कूली बच्चों और युवाओं की सक्रिय भागीदारी, राज्य सरकारों की योजनाओं, और डिजिटल जागरूकता अभियानों के समन्वय से जल आत्मनिर्भर भारत 2047 का सपना साकार किया जा सकता है।

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