पद्मभूषण शारदा सिन्हा के निधन से संगीत जगत और खासतौर से लोकसंगीत को एक गहरा धक्का पहुंचा है जिसकी भरपाई लगभग असंभव है। उन्होंने जिस साज संभार के साथ बिहारी लोकसंगीत को विश्व भर में लोकप्रिय बनाया वह अप्रतिम है। उनके बाद और उनसे प्रेरित बहुत सारी गायिकाओं ने छठ गीतों की प्रस्तुति की लेकिन शारदा सिन्हा को नहीं पा सकीं, यह एक तिक्त सच्चाई है। उनके सुरीले गले में उत्तर बिहार की सदानीरा नदियों का प्रवाह,आम्रकुजों में गूंजित कोयल की मधुर कूक, मिथिला और भोजपुर की माटी की सोंधी गंध और बिहारी ठाठ की ठसक सब कुछ एकाकार हो जाते थे। इतनी लोकप्रियता कम ही लोगों को नसीब होती है। आज वे भौतिक काया में नहीं हैं लेकिन उनकी सुरीली आवाज़ सदियों तक उनकी याद दिलाती रहेंगी।
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प्रो. ( डाॅ.) अरुण कुमार
पूर्व प्राचार्य
मुंशी सिंह काॅलेज