मियावाकी वन – जलवायु परिवर्तन जैव विविधता संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण का वैज्ञानिक समाधान

मियावाकी वन: जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण का वैज्ञानिक समाधान

गरीब दर्शन / अजय सहाय

मियावाकी पद्धति, जो जापानी वनस्पति वैज्ञानिक डॉ. अकीरा मियावाकी द्वारा विकसित की गई है, विश्वभर में जैव विविधता संरक्षण, जलवायु परिवर्तन शमन, जल संकट समाधान और वायु प्रदूषण नियंत्रण के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी कदम साबित हो रही है, जिसके अंतर्गत पौधों को उनके प्राकृतिक आवास (Ecological Niche) और ऊंचाई (Height) के आधार पर चार प्रमुख श्रेणियों में विभाजित कर घना रोपण किया जाता है ताकि वे मिलकर एक मजबूत और संतुलित पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem) बना सकें। इस पद्धति में सबसे ऊँचे वृक्षों की कैनोपी लेवल (Canopy Layer) होती है जिसमें पीपल, नीम, बरगद, आम, अर्जुन जैसे 30-40 फीट या उससे अधिक ऊँचाई तक बढ़ने वाले वृक्ष लगाए जाते हैं, जो ऊपरी स्तर पर छाया प्रदान करने, कार्बन अवशोषण (Carbon Sink) करने और ऑक्सीजन (Oxygen Release) का उत्पादन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसके बाद सब-कैनोपी लेवल (Sub-Canopy Layer) में 15-30 फीट तक ऊँचाई वाले वृक्ष जैसे जामुन, कचनार, अमरूद, बेल, महुआ, सेमल लगाए जाते हैं, जो मुख्य कैनोपी के नीचे रहते हुए छाया सहिष्णु होते हैं। तीसरी श्रेणी झाड़ियों (Shrub Layer) की होती है जिसमें 6-15 फीट तक की झाड़ियाँ जैसे करोंदा, हरसिंगार, गुलर, बेर, हल्दी, नींबू आदि होते हैं, जो मिट्टी की नमी बनाए रखने, जड़ों को मजबूत करने और जैव विविधता (Biodiversity) बढ़ाने में सहायक होती हैं। अंतिम स्तर ग्राउंड कवर (Ground Cover Layer) का होता है जिसमें तुलसी, मेंहदी, लेमन ग्रास, मूसली, सर्पगंधा, गिलोय जैसी 1-6 फीट तक की बेलें और छोटे पौधे शामिल होते हैं, जो मिट्टी के कटाव (Soil Erosion) को रोकने और नमी बनाए रखने में सहायक होते हैं। इस पद्धति की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि पौधों को पारंपरिक सीधी कतारों में न लगाकर प्रति वर्ग मीटर 3-4 पौधों की घनता के साथ अनियमित (Random Plantation) और मिश्रित प्रजातियों (Species Mix) के रूप में लगाया जाता है, जिससे वे आपस में प्रतिस्पर्धा करके तेजी से बढ़ते हैं और एक प्राकृतिक जंगल जैसा घना वन तैयार होता है। मिट्टी की तैयारी में जैविक खाद (Compost), गोबर खाद (Cow Dung Manure), नारियल की भूसी (Coconut Husk) और सूखी पत्तियों (Dry Leaves) का उपयोग किया जाता है, जिससे मिट्टी की जलधारण क्षमता (Water Holding Capacity) और पोषण स्तर में वृद्धि होती है। वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार, प्रति 1 हेक्टेयर (10,000 वर्ग मीटर) में लगभग 30,000 से 40,000 पौधे लगाए जा सकते हैं, जो 5-10 वर्षों में प्राकृतिक वन के समान घनत्व और ऊँचाई प्राप्त कर लेते हैं। एक अनुमान के अनुसार, 5000 वर्ग मीटर का मियावाकी वन प्रतिवर्ष लगभग 300-350 टन CO₂ अवशोषित (Carbon Sequestration) कर सकता है, जो पारंपरिक वनों की तुलना में 30 गुना अधिक घनत्व (Density) और 10 गुना तेजी से वृद्धि (Growth Rate) दर को दर्शाता है। प्रति हेक्टेयर मियावाकी वन 6.25 टन CO₂ प्रतिवर्ष अवशोषित करने की क्षमता रखता है (स्रोत: CET Journal 2022), जिससे यह जलवायु परिवर्तन (Climate Change Mitigation) के विरुद्ध लड़ाई में एक अत्यंत प्रभावी उपकरण साबित होता है। इसके अतिरिक्त, मियावाकी वन स्थानीय स्तर पर तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस तक की कमी (Temperature Reduction) ला सकते हैं, जो वैश्विक तापमान वृद्धि (Global Warming) को नियंत्रित करने में सहायक है। वर्षा जल संचयन (Rainwater Harvesting) की क्षमता भी इन वनों में अत्यधिक होती है, जिससे भूजल स्तर (Groundwater Recharge) में सुधार होता है। मियावाकी वन विधि द्वारा विकसित 1 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल का जंगल लगभग 20 से 30 करोड़ लीटर (20,00,000 से 30,00,000 घन मीटर) वर्षा जल भंडारण क्षमता रखता है। यह घना वनस्पति आवरण वर्षा जल को भूमि में अवशोषित कर भूजल स्तर को recharge करता है। मियावाकी वन में जलधारण क्षमता सामान्य हरित क्षेत्र की तुलना में 5 से 10 गुना अधिक होती है। इसकी जड़ संरचना और घनत्व जल प्रवाह को रोककर मृदा अपरदन (Soil Erosion) भी कम करता है। इस प्रकार मियावाकी वन वर्षा जल संचयन (Rainwater Storage) और जल संकट समाधान (Water Crisis Solution) में अहम भूमिका निभाता है। मियावाकी पद्धति से उगाए गए वनों में जैव विविधता पारंपरिक वनों की तुलना में 18 गुना अधिक पाई जाती है (स्रोत: Creating Tomorrows Forests UK), जिससे पक्षियों, कीटों, मधुमक्खियों और अन्य जीवों को उपयुक्त आवास (Habitat) मिलता है और पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem) मजबूत होता है। वायु प्रदूषण (Air Pollution) के नियंत्रण में भी मियावाकी वन अत्यंत प्रभावी सिद्ध होते हैं क्योंकि इनके घने वृक्षों की पत्तियाँ धूलकणों (Particulate Matter), नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO₂), सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂) जैसी हानिकारक गैसों को अवशोषित करती हैं और शुद्ध वायु (Clean Air) प्रदान करती हैं (स्रोत: ATS Greens)। भारत में शहरी क्षेत्रों (Urban Areas) में तेजी से बढ़ते प्रदूषण और हरित क्षेत्र (Green Cover) की कमी को देखते हुए मियावाकी वन रोपण एक कारगर उपाय है, जहाँ सीमित स्थान में भी सघन और जैव विविध वन बनाए जा सकते हैं। उदाहरणस्वरूप, बेंगलुरु में 1.25 एकड़ क्षेत्र में तैयार किए गए मियावाकी वन में लगभग 59,000 पौधे लगाए गए, जो 200-250 टन CO₂ प्रतिवर्ष अवशोषित करने की क्षमता रखते हैं। दिल्ली, मुंबई, पुणे, चेन्नई जैसे शहरों में भी मियावाकी वनों का विस्तार हो रहा है जिससे शहरी ताप द्वीप प्रभाव (Urban Heat Island Effect) में कमी लाई जा रही है। मियावाकी वन 25 गुना अधिक कार्बन अवशोषण क्षमता (Carbon Absorption Capacity) रखते हैं और 30 गुना घने होते हैं, जिससे जैव विविधता में वृद्धि (Biodiversity Enhancement), वर्षा जल संचयन (Rainwater Storage), तापमान में कमी (Temperature Mitigation), वायु प्रदूषण शमन (Pollution Mitigation) जैसे कई लाभ प्राप्त होते हैं। जलवायु परिवर्तन (Climate Change) की चुनौती, जो वैश्विक तापमान वृद्धि (Global Warming), अप्रत्याशित मौसम परिवर्तन (Extreme Weather Events), जल संकट (Water Crisis) और जैव विविधता ह्रास (Biodiversity Loss) जैसे संकटों को बढ़ावा दे रही है, के समाधान में मियावाकी पद्धति एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण (Scientific Approach) प्रस्तुत करती है। IPCC की रिपोर्ट (2023) के अनुसार, वैश्विक तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए वनों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है, और मियावाकी पद्धति इस दिशा में एक प्रभावी समाधान प्रदान करती है। भारत सरकार द्वारा चलाए जा रहे ‘कैच द रेन’ अभियान, स्मार्ट सिटी मिशन, और राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) में मियावाकी वन पद्धति को शामिल कर शहरी हरित क्षेत्र (Urban Green Cover) बढ़ाने, जल संरक्षण (Water Conservation), और प्रदूषण नियंत्रण (Pollution Control) जैसे लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है। 2030 तक भारत में 33% वन क्षेत्र (Forest Cover) प्राप्त करने के लक्ष्य में भी मियावाकी पद्धति महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। इस प्रकार, मियावाकी वन न केवल कार्बन अवशोषण, ऑक्सीजन उत्पादन, जल संरक्षण और जैव विविधता में वृद्धि करते हैं, बल्कि जलवायु परिवर्तन, जल संकट, और प्रदूषण नियंत्रण जैसे वैश्विक संकटों के समाधान में वैज्ञानिक दृष्टिकोण (Scientific Intent) और रिकॉर्ड आधारित पहल (Record Intent) प्रस्तुत करते हैं।

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