प्रभावित कर्मियों के परिवार में छाया मातम
गरीब दर्शन / पटना – मगध विश्वविद्यालय बोधगया के कुलपति प्रो. शशि प्रताप शाही ने महामहिम राज्यपाल बिहार और विश्वविद्यालय के कुलाधिपति के आदेश को चुनौती देते हुए पटना उच्च न्यायालय में याचिका दायर की है। यह मामला कर्मचारियों की नियुक्ति, वेतन भुगतान और वेतान्तर से जुड़ा हुआ है।महामहिम राज्यपाल के कार्यालय ने शैलेन्द्र कुमार श्रीवास्तव और टिंकू कुमार की नियुक्ति को वैधानिक मानते हुए 1 मार्च 2024 को मगध विश्वविद्यालय को उनके वेतन और वेतान्तर का भुगतान करने का आदेश दिया था। हालांकि, कुलपति प्रो. शशि प्रताप शाही ने इस आदेश को मानने से इनकार कर दिया और CWJC-19238 / 2024 के तहत पटना उच्च न्यायालय में चुनौती दायर कर दी। यह संभवतः बिहार का पहला मामला है, जहां किसी कुलपति ने कुलाधिपति के आदेश को मानने से इनकार करते हुए न्यायालय में चुनौती दी है। यह निर्णय न केवल विश्वविद्यालय प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करता है, बल्कि इसे एक प्रकार की अनुशासनहीनता भी माना जा रहा है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि महामहिम राज्यपाल और कुलाधिपति कार्यालय इस मामले पर क्या रुख अपनाते हैं। कर्मचारियों शैलेन्द्र कुमार श्रीवास्तव और टिंकू कुमार के अनुसार, कुलपति ने उन्हें लगभग 9 महीने तक विश्वविद्यालय के चक्कर कटवाए और बार-बार आश्वासन दिया कि उनका योगदान जल्द ही स्वीकार कर लिया जाएगा। लेकिन, कुलपति द्वारा नियुक्ति को नजरअंदाज करते हुए कुलाधिपति के आदेश को चुनौती देने का निर्णय इन कर्मियों और उनके परिवार के लिए गहरा सदमा लेकर आया है। दोनों कर्मियों ने वर्षों तक कानूनी लड़ाई लड़ी और अपने पक्ष में आदेश मिलने पर रोजगार की उम्मीद जगाई थी। लेकिन, कुलपति के इस कदम से उनकी उम्मीदें धूमिल हो गईं। अब वे मानसिक तनाव और आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं । कर्मियों और उनके परिवार के लिए यह स्थिति बेहद दर्दनाक है। परिवार ने कहा कि “हमने उम्मीद की थी कि वर्षों के संघर्ष के बाद अब स्थिरता आएगी, लेकिन कुलपति के इस निर्णय ने हमारे जीवन को फिर से संघर्ष में धकेल दिया।” शैलेन्द्र कुमार श्रीवास्तव और टिंकू कुमार ने कुलपति से आग्रह किया है कि वे पटना उच्च न्यायालय में दायर चुनौती को वापस लें और उनके रोजगार का मार्ग प्रशस्त करें। साथ ही, उन्होंने महामहिम राज्यपाल और न्यायालय से न्याय की उम्मीद जताई है। यह मामला न केवल प्रभावित कर्मियों के भविष्य को प्रभावित करेगा, बल्कि उच्च शिक्षा के प्रशासनिक ढांचे पर भी गहरे प्रश्न खड़े करता है। अब सबकी नजरें न्यायालय और कुलाधिपति कार्यालय के निर्णय पर टिकी हुई हैं।