भारत में वन संरक्षण की चुनौतियाँ और अवसर

भारत में वन संरक्षण की चुनौतियाँ और अवसर

गरीब दर्शन / अजय सहाय

भारत में वनों की स्थिति, वैश्विक जलवायु परिवर्तन और तापवृद्धि की गंभीरता के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण विषय बन चुकी है, जहाँ वन केवल जैव विविधता (Biodiversity) का आधार नहीं बल्कि जलवायु संतुलन, वर्षा चक्र और कार्बन संचयन (Carbon Sequestration) का भी मुख्य आधार हैं। वर्तमान में भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 21.71% हिस्सा वनों से आच्छादित है, जो कि लगभग 7,13,789 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल है (FSI रिपोर्ट 2023), परंतु इसमें भी घने वनों (Very Dense Forests) का क्षेत्र केवल 2.80% यानी लगभग 99,779 वर्ग किलोमीटर है, जबकि खुला वन क्षेत्र (Open Forests) तेजी से बढ़ रहा है, जो वन गुणवत्ता में गिरावट का संकेत देता है। भारत में वनों के लिए सबसे बड़ी चुनौती अवैध कटाई, अतिक्रमण, शहरीकरण, औद्योगीकरण और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव हैं। पिछले दो दशकों में भारत में औसतन 2.7 मिलियन हेक्टेयर वन क्षेत्र का क्षरण हुआ है, विशेषकर मध्य भारत, पश्चिमी घाट और पूर्वोत्तर राज्यों में। ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव ने वन आधारित वर्षा चक्र को भी प्रभावित किया है, जहाँ वनों में औसतन 1100-1500 मिमी वर्षा होती है, जिससे भारत के वन क्षेत्रों में लगभग 480-520 बिलियन क्यूबिक मीटर (BCM) वर्षा जल गिरता है। लेकिन इस जल का भूजल रिचार्ज या पारिस्थितिकीय पुनर्भरण सीमित रहता है क्योंकि वनों के नीचे की मिट्टी की जल धारण क्षमता में गिरावट आई है। भारत सरकार ने वन संरक्षण हेतु कई योजनाएँ चलाई हैं, जैसे “राष्ट्रीय हरित भारत मिशन” (National Mission for a Green India), “कम्पेंसेटरी अफॉरेस्टेशन फंड मैनेजमेंट एंड प्लानिंग अथॉरिटी” (CAMPA), “वन्यजीव संरक्षण परियोजना”, “अमृत वन योजना”, परंतु राज्यवार कार्यान्वयन में असमानता रही है। उदाहरण के तौर पर, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम और केरल जैसे राज्यों में वन आच्छादन बढ़ा है, जबकि राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के वन क्षेत्रों में गिरावट आई है। उत्तराखंड ने 2022 में 8000 हेक्टेयर नए जंगल विकसित किए, जबकि राजस्थान में वन क्षेत्र 1% घटा। भारत के वनों में औसतन 35-40% कार्बन स्टॉक संग्रहीत रहता है, जो लगभग 7,124 मिलियन टन CO2 के बराबर है, लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण वनों का यह कार्बन स्टॉक खतरे में है। भारत में हर वर्ष वन क्षेत्रों में औसतन 45-50 हजार आग की घटनाएँ होती हैं, जिससे 0.18 मिलियन हेक्टेयर वन प्रभावित होता है और लगभग 8-10 मिलियन टन CO2 उत्सर्जन होता है। वैश्विक परिप्रेक्ष्य में देखें तो अमेज़न वर्षावन (Amazon Rainforest) जो “पृथ्वी के फेफड़े” (Lungs of the Earth) कहलाता है, उसमें 2023 तक 5.5 मिलियन वर्ग किलोमीटर का क्षेत्रफल है, परंतु 2001-2023 के बीच अमेज़न क्षेत्र में 17% से अधिक वनों की कटाई हो चुकी है, जिससे लगभग 1.5 बिलियन टन CO2 उत्सर्जित हुआ है। अमेज़न जंगल का हर वर्ष लगभग 10 BCM वर्षा जल अवशोषित होता है, जो दक्षिण अमेरिका के वर्षा चक्र का आधार है। वहीं, अमेरिका के लॉस एंजेलिस और कैलिफोर्निया में जंगल की आग ने 2020 में रिकॉर्ड तोड़ 4.3 मिलियन एकड़ वन क्षेत्र को जलाया, जिससे अनुमानतः 112 मिलियन टन CO2 वायुमंडल में उत्सर्जित हुआ, जो भारत के वार्षिक औद्योगिक उत्सर्जन का लगभग 25% है। भारत में वन संरक्षण के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन से निपटने की रणनीतियों में भी वनों का बड़ा योगदान है। भारत ने 2030 तक वन आच्छादन को 33% तक पहुँचाने का लक्ष्य रखा है, परंतु CAMPA फंड (2015-2023) के तहत राज्यों ने 54% से अधिक राशि केवल प्रशासनिक खर्चों में उपयोग की, जिससे वृक्षारोपण की वास्तविक संख्या और गुणवत्ता प्रभावित हुई।   भारत के वनों में कार्बन सिंक (Carbon Sink) की क्षमता बहुत महत्वपूर्ण है, जो देश के कुल ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन को संतुलित करने में मदद करती है।

Forest Survey of India (FSI) की 2023 रिपोर्ट और विभिन्न शोधों के अनुसार:

भारत के वन क्षेत्र में कुल कार्बन स्टॉक (Carbon Stock) लगभग 7,124 मिलियन टन CO2 समकक्ष है।

यह कार्बन स्टॉक चार भागों में विभाजित होता है:

1. जैविक वनों की मिट्टी (Soil Organic Carbon) – लगभग 56%

2. ऊपरी वनस्पति भाग (Above Ground Biomass) – लगभग 26%

3. भूमिगत वनस्पति भाग (Below Ground Biomass) – लगभग 10%

4. लीफ लिटर और डेडवुड – लगभग 8%

भारत के वनों और वृक्षारोपण से प्रति वर्ष लगभग 2.5 से 3 बिलियन टन CO2 समकक्ष कार्बन का अवशोषण (sequestration) होता है।

भारत सरकार ने 2030 तक अतिरिक्त 2.5 से 3 बिलियन टन CO2 कार्बन सिंक बढ़ाने का लक्ष्य रखा है, जिसे Nationally Determined Contributions (NDC) के तहत प्रस्तुत किया गया है।

भारत का कुल कार्बन स्टॉक वैश्विक वनों के कार्बन स्टॉक का लगभग 2% है।

अमेज़न वर्षावनों में लगभग 86 बिलियन टन CO2 का कार्बन स्टॉक है, जो भारत के वनों की तुलना में कई गुना अधिक है।मध्य प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और महाराष्ट्र भारत के शीर्ष पांच राज्य हैं जहाँ सबसे अधिक कार्बन स्टॉक है।

मध्य प्रदेश में सबसे अधिक 500 मिलियन टन CO2 समकक्ष कार्बन स्टॉक मौजूद है।

राज्यों द्वारा चलाए जा रहे अभियानों में मध्य प्रदेश का “हरित प्रदेश मिशन”, महाराष्ट्र का “पृथ्वी मित्र अभियान”, राजस्थान का “ग्रो ग्रीन राजस्थान” और उत्तर प्रदेश का “वन महोत्सव” उल्लेखनीय हैं। उत्तर प्रदेश ने 2023 में एक दिन में 35 करोड़ पौधे लगाने का रिकॉर्ड बनाया। जलवायु परिवर्तन के प्रभावों में वनों में जैव विविधता का क्षरण भी शामिल है, जहाँ IUCN की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 683 से अधिक वन्यजीव प्रजातियाँ संकटग्रस्त (Endangered) श्रेणी में हैं। साथ ही, वनों की कटाई के कारण भारतीय मानसून भी प्रभावित हो रहा है, क्योंकि वनों का वाष्पोत्सर्जन (Evapotranspiration) मानसून की तीव्रता को नियंत्रित करता है। जलवायु परिवर्तन पर अंतरसरकारी पैनल (IPCC) की रिपोर्ट के अनुसार, यदि वैश्विक तापमान 2 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ता है, तो भारत के वन क्षेत्रों में 30-40% जैव विविधता हानि हो सकती है और मानसूनी वर्षा में 15-20% गिरावट आ सकती है। भारत के वन क्षेत्रों में औसतन 400-500 BCM वर्षा जल गिरता है, जो पूरे देश की जल संसाधन प्रणाली के लिए महत्वपूर्ण है। इसके बावजूद, वन आधारित जल संरक्षण योजनाओं में न्यूनतम निवेश हो रहा है। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 256 जिले जल संकट ग्रस्त हैं और वनों का क्षरण जल संकट को और बढ़ा रहा है। देश के 60% से अधिक भूजल अधिसंवेदनशील क्षेत्रों में वन कटाई हुई है। ऐसे में वन संरक्षण को जल संरक्षण और जलवायु रणनीतियों के साथ एकीकृत करना आवश्यक है। भारत का योगदान वैश्विक जलवायु परिवर्तन के मुकाबले में अहम है, जहाँ वनों के माध्यम से कार्बन सिंक बढ़ाकर वैश्विक तापमान को नियंत्रित किया जा सकता है। भारत में वनों के बहुआयामी महत्व को देखते हुए वैज्ञानिक वानिकी (Scientific Forestry), सामुदायिक वन प्रबंधन (Joint Forest Management), और वन्यजीव गलियारे (Wildlife Corridors) को मजबूत करने की आवश्यकता है। इसके साथ ही, डिजिटल तकनीकों जैसे GIS, रिमोट सेंसिंग, और सैटेलाइट आधारित निगरानी से वन संरक्षण को प्रभावी बनाया जा सकता है। अंततः, वन केवल पर्यावरण का हिस्सा नहीं, बल्कि जीवन का आधार हैं, जो जलवायु परिवर्तन, जल संकट, जैव विविधता संरक्षण और सतत विकास के लिए आवश्यक हैं। यदि भारत अपने वन संसाधनों को संरक्षित और पुनर्जीवित करता है, तो न केवल जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम किया जा सकता है, बल्कि खाद्य, जल और ऊर्जा सुरक्षा को भी सुनिश्चित किया जा सकता है।

Loading

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *