प्रेस कॉन्फ्रेंस में जब एक पत्रकार ने डॉ. दिलीप पर लगाए गए आरोपों का आधार पूछा तो आपा खो बैठे प्रशांत किशोर
प्रशांत किशोर की पत्रकार वार्ता में भंडाफोड़ जिनके साथ मंच साझा किया वो निकले फ्रॉड
पूर्व सचिव ने सुप्रीम कोर्ट में भाई गुरदयाल सिंह को बताया था ‘फ्रॉड’, प्रशांत किशोर की विश्वसनीयता सवालों के घेरे में
गरीब दर्शन / पटना –
जन सुराज पार्टी के प्रमुख प्रशांत किशोर एक बार फिर विवादों में हैं। बिहार बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष एवं एमजीएम मेडिकल कॉलेज के निदेशक डॉ. दिलीप कुमार जायसवाल पर आरोप लगाने के लिए उन्होंने जिनके साथ मंच साझा किया – गुरदयाल सिंह – अब खुद फर्जी निकले। और यह कोई हल्का आरोप नहीं, बल्कि खुद उनके ही सगे भाई और कॉलेज ट्रस्ट के पूर्व सचिव स्वर्गीय करतार सिंह का सुप्रीम कोर्ट में दिया हुआ शपथपत्र इसका गवाह है।
सुप्रीम कोर्ट में दर्ज हलफनामे में कहा गया – “गुरदयाल सिंह फ्रॉड है”
5 जुलाई 2018 को सर्वोच्च न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका SLP (C) No. 7532/2016 व 4180-4181/2016 में दर्ज हलफनामे में स्व. करतार सिंह ने अपनी खराब स्वास्थ्य स्थिति (पक्षाघात व डायलिसिस) का हवाला देते हुए कहा था कि उन्होंने भरोसे में आकर अपने भाई गुरदयाल सिंह को केस की पैरवी करने का अधिकार सौंपा था। लेकिन बाद में पता चला कि गुरदयाल सिंह ने फर्जी दस्तावेज़ों के आधार पर आवेदन देकर उन्हें सचिव बताकर झूठी सूचना दाखिल की, जबकि वे पहले ही सचिव पद छोड़ चुके थे।
कथित ट्रस्ट मीटिंग का भी खुलासा: “मैं उस बैठक में गया ही नहीं” – करतार सिंह का बयान
करतार सिंह के अनुसार, ट्रस्ट की जो बैठक 26 जून 2016 को अमृतसर में दिखायी गई, उसमें न तो उन्होंने भाग लिया, न ही उन्हें उसकी जानकारी थी। सुप्रीम कोर्ट में दिए गए बयान में उन्होंने लिखा – “यह न केवल गलत है बल्कि कानूनन अपराध है।”
“मैं सचिव नहीं, ये सब फर्जी दस्तावेज़ हैं” – करतार सिंह
दिनांक 5 जुलाई 2018 को सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल शपथपत्र में स्वर्गीय करतार सिंह ने साफ तौर पर कहा था कि:“मैं लकवा ग्रस्त हूँ, डायलिसिस पर हूँ और केस की पैरवी अपने भाई गुरदयाल सिंह को सौंपा था। लेकिन उसने मेरे नाम से फर्जी दस्तावेज दाखिल किए। मुझे ट्रस्ट का सचिव दिखाया गया, जबकि मैं पद छोड़ चुका हूँ।”
यही नहीं, उन्होंने उस फर्जी ट्रस्ट बैठक का भी खंडन किया जिसमें उन्हें शामिल बताया गया।
छात्रा की आत्महत्या के बाद छोड़ा कॉलेज ? फिर मिले मान्यता डॉ. दिलीप के प्रयासों से
सूत्रों के अनुसार, जब तक करतार सिंह सचिव थे, कॉलेज को मान्यता नहीं मिल सकी थी। एक छात्रा ने मान्यता न मिलने से आत्महत्या कर ली थी, जिससे छात्रों में जबरदस्त आक्रोश फैल गया। इसके बाद करतार सिंह कॉलेज छोड़कर कथित तौर पर फरार हो गए। तत्पश्चात ट्रस्ट की पुनर्गठन बैठक में डॉ. दिलीप कुमार जायसवाल को ज़िम्मेदारी दी गई और उनके प्रयासों से कॉलेज को मान्यता मिली। आज कॉलेज देश-विदेश में अपना नाम रोशन कर रहा है।
प्रशांत किशोर का पत्रकार से झल्लाना वायरल: “तुम कौन हो ? वकील हो क्या ?”
प्रशांत किशोर का आक्रोश सिर्फ दस्तावेज़ों में ही नहीं, मंच पर भी देखने को मिला। किशनगंज के बहादुरगंज में आयोजित एक जनसभा के बाद प्रेस वार्ता के दौरान एक पत्रकार ने उनसे डॉ. दिलीप जायसवाल पर लगाए गए आरोपों का आधार पूछा, जिस पर PK बिफर गए।
उन्होंने कहा – “तुम कौन हो? वकील हो क्या? हम कोई राजद के प्रवक्ता नहीं हैं जो जवाब नहीं देंगे। जब दिलीप जायसवाल जवाब नहीं दे पाए तो तुम क्या दोगे?” इसके बाद वे गाड़ी से उतरकर पत्रकार को घूरने लगे। इस घटनाक्रम का वीडियो वायरल हो गया है।पत्रकार संगठनों में भी नाराजगी देखी जा रही है।
अब जनता का सवाल: प्रशांत किशोर की ‘जनसुराज’ में कितना है ‘सत्य’ और कितना ‘सियासी स्क्रिप्ट’ ?
इस घटनाक्रम के बाद प्रशांत किशोर की विश्वसनीयता पर बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। क्या PK बिना तथ्यों की पुष्टि किए फर्जी लोगों को अपना मंच दे रहे हैं? क्या यह सिर्फ सियासी एजेंडा है या एक सुनियोजित अफवाह फैलाने की रणनीति ?
जनमानस में यही चर्चा है कि PK को न केवल माफी माँगनी चाहिए, बल्कि अपने तथ्यों की पुष्टि किए बिना सार्वजनिक मंच से आरोप लगाने पर पुनर्विचार भी करना चाहिए।
*सियासी विश्लेषण:*
डॉ. दिलीप जायसवाल – मेडिकल कॉलेज को पटरी पर लाने वाले जननेता
प्रशांत किशोर – ‘जनसुराज’ में फर्जी चेहरों के भरोसे ?
गुरदयाल सिंह – सुप्रीम कोर्ट में भाई ने ही ठहराया ‘फ्रॉड’
अब जनता पूछ रही है: कौन असली ? कौन नकली ? कौन जनसुराज ? कौन जनविनाश ?
स्थानीय नागरिकों का कहना है कि डॉ. दिलीप कुमार जायसवाल ने न सिर्फ कॉलेज को पुनर्जीवित किया, बल्कि सीमांचल क्षेत्र में स्वास्थ्य और चिकित्सा शिक्षा को नई ऊँचाई दी है। बिहार ही नहीं, बंगाल और नेपाल से भी छात्र-छात्राएं यहां पढ़ने आते हैं।
प्रशांत किशोर की ‘जनसुराज’ यात्रा में अगर तथ्यों की जगह फर्जी व्यक्तियों और बयानबाजियों को जगह दी जाती रही, तो साख पर गंभीर सवाल खड़े होंगे। अब बॉल PK के पाले में है – वे या तो माफी मांगें, या जवाब दें… या फिर जनता तय करेगी कि कौन असली है और कौन फर्जी।