गांव-गांव पानी ग्रामीण भारत में जल प्रबंधन

गरीब दर्शन / डाॅ अजय सहाय ” जल प्रहरी “
गांव-गांव पानी: ग्रामीण भारत में जल प्रबंधन विषय आज केवल एक आवश्यकता नहीं बल्कि 2047 तक जल आत्मनिर्भर भारत का सपना साकार करने की बुनियादी शर्त बन चुका है, क्योंकि भारत की लगभग 65% जनसंख्या आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है और उनकी आजीविका, कृषि, पशुपालन, घरेलू उपयोग, और पारिस्थितिक संतुलन का सीधा संबंध जल स्रोतों से जुड़ा हुआ है, परंतु पिछले कुछ दशकों में जलवायु परिवर्तन, वर्षा की अनिश्चितता, पारंपरिक जल स्रोतों की उपेक्षा, भूजल का अत्यधिक दोहन, और योजना के स्तर पर समन्वय की कमी के कारण गाँवों में जल संकट लगातार गहराता गया है, 2023 की नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार देश के 256 जिलों में जल संकट की स्थिति गंभीर है और ग्रामीण भारत के 112 करोड़ लोगों में से 70% लोगों को प्रतिदिन 2 से 3 घंटे पानी लाने में खर्च करने पड़ते हैं, भारत में प्रतिवर्ष औसतन 4000 अरब घनमीटर वर्षा होती है परंतु केवल 18% जल ही संरक्षित हो पाता है जबकि शेष 82% बहकर निकल जाता है, ग्रामीण क्षेत्रों में जल संरक्षण की परंपरागत विधियाँ जैसे जोहड़, तालाब, बावड़ी, कुंड, आहर-पाइन, चाल-खाल, कुएँ, और हौज न केवल वर्षा जल संचयन के अत्यंत प्रभावी साधन रहे हैं बल्कि ये सामुदायिक स्वामित्व और सहभागिता के उत्कृष्ट उदाहरण भी रहे हैं, उदाहरणस्वरूप राजस्थान के झुंझुनू जिले में पुनर्जीवित 95 जोहड़ों से 2023 तक 22 गाँवों को 12 महीनों तक पेयजल मिला, वहीं बिहार के नालंदा जिले में 750 आहर-पाइन प्रणाली के माध्यम से वर्षा जल संचयन की क्षमता 1.5 करोड़ लीटर तक दर्ज की गई, झारखंड के गुमला जिले में 200 वर्ष पुराने जलहौजों को पुनर्जीवित कर 50 गाँवों की जल आपूर्ति बहाल की गई, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो ग्रामीण जल प्रबंधन को भूजल पुनर्भरण, सतही जल संरचना, और जल उपयोग दक्षता (water use efficiency) तीन स्तंभों पर मजबूत करना आवश्यक है, भारत सरकार की जल जीवन मिशन योजना के अंतर्गत 2024 तक 13 करोड़ ग्रामीण परिवारों को नल से जल की सुविधा उपलब्ध कराई गई है, जिसमें पाइप्ड वाटर नेटवर्क, ग्रेविटी आधारित स्कीम, सौर पंप, और डिजिटल जल मीटरिंग का समावेश किया गया है, इसके अतिरिक्त अटल भूजल योजना के अंतर्गत 7 राज्यों के 8350 ग्रामों में सामुदायिक भूजल प्रबंधन प्रणाली लागू की गई जिससे जल स्तर में औसतन 2.5 मीटर तक सुधार हुआ, ‘कैच द रेन’ अभियान के तहत 2023 तक 2.5 लाख जल संरचनाएँ बनाई गईं, जिससे 1200 करोड़ लीटर वर्षा जल का संचयन हुआ, महाराष्ट्र के सूखा प्रभावित क्षेत्रों में जलयुक्त शिवार योजना के अंतर्गत 2023 तक 6 लाख हेक्टेयर भूमि सिंचाई के लिए सक्षम हुई, उत्तराखंड में चाल-खाल संरचनाओं से 35 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में जल पुनर्भरण किया गया, वहीं कर्नाटक के कावेरी बेसिन में 2023 तक 400 चेक डैम और 75 परकोलेशन टैंक बनाए गए जिससे जल स्रोतों की गहराई में 1.2 मीटर की वृद्धि दर्ज हुई, नई तकनीकों के तहत ग्रामीण भारत में सौर ऊर्जा चालित जल पंप, डिजिटल वाटर सेंसर, जल एटीएम, माइक्रो सिंचाई (ड्रिप और स्प्रिंकलर), और GIS आधारित जलग्रहण प्रबंधन को अपनाया जा रहा है, नीति आयोग की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार माइक्रो इरिगेशन से जल की खपत में 45% और उत्पादन में 25% तक वृद्धि हुई है, उधर बिहार, मध्यप्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों ने जल उपयोगिता आधारित बजट प्रणाली अपनाकर ग्राम स्तर पर जल प्रबंधन को पारदर्शी बनाया है, नई थीम के रूप में ‘जल पंचायत’, ‘जल चौपाल’, ‘जल दूत’, ‘जल दीदी’ जैसे सामुदायिक मॉडल अपनाए गए हैं जिससे ग्रामीण महिलाएँ, युवा और किसान जल निर्णयों में भागीदारी कर रहे हैं, राजस्थान के दौसा जिले की 2023 की ‘जल महिला समिति’ ने 150 महिलाओं को प्रशिक्षित कर 40 हेक्टेयर क्षेत्र में जल संचयन किया, बिहार की ‘हर खेत को पानी’ योजना के तहत सिंचाई नेटवर्क में 1500 जल बिंदुओं को बहाल किया गया, उत्तर प्रदेश में ‘जल राशन कार्ड’ के माध्यम से प्रति परिवार जल उपयोग की गणना कर उपभोग कम करने की पहल की गई है, जलग्रहण क्षेत्र में वृक्षारोपण और मृदा संरक्षण को भी ग्रामीण जल प्रबंधन का अंग बनाया गया है, 2023 में गुजरात के बनासकांठा जिले में 2.5 लाख वृक्षारोपण कर 80 तालाबों की जलधारण क्षमता 20% तक बढ़ाई गई, ग्रामीण स्कूलों में जल पाठशालाएँ, पोस्टर प्रतियोगिताएँ, जल विज्ञान मेला जैसे कार्यक्रम जल साक्षरता बढ़ा रहे हैं, 2022-24 के बीच ग्रामीण भारत में जल से जुड़े 78,000 स्वयं सहायता समूह सक्रिय हुए हैं जो टंकी निर्माण, पाइपलाइन रखरखाव, जल गुणवत्ता परीक्षण, और जल बजट जैसे कार्य कर रहे हैं, जल शक्ति मंत्रालय द्वारा तैयार की गई डिजिटल वाटर मैपिंग प्रणाली से अब 4.5 लाख गाँवों के जल स्रोतों का स्थान, मात्रा और गुणवत्ता दर्ज की जा रही है जिससे योजना निर्माण आसान हुआ है, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने हेतु ग्रामीण जल संरचनाओं की डिज़ाइन में अब अधिक गहराई, पक्की दीवारें, ओवरफ्लो चैनल और चेक वाल्व जैसे उपाय अपनाए जा रहे हैं, 2023 की IPCC रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण भारत में वर्षा का वितरण 17% तक असंतुलित हो चुका है, जिससे अल्पवर्षा और अतिवर्षा दोनों का दबाव जल स्रोतों पर पड़ा है, अतः वैज्ञानिक नीति, तकनीकी नवाचार, सामुदायिक भागीदारी, और पारंपरिक समझ के मेल से ही गांव-गांव पानी पहुँचाना संभव है, जिससे 2047 तक भारत का हर गाँव जल आत्मनिर्भर बन सके और कृषि, पर्यावरण, स्वास्थ्य, और जीवन स्तर में व्यापक सुधार लाया जा सके।