बिहार में वर्षाजल का भंडारण: नीतियाँ आंकड़े और भविष्य की रणनीति
गरीब दर्शन / डाॅ अजय सहाय ” जल प्रहरी “
बिहार में मानसूनी वर्षा के दौरान गिरने वाले जल की कुल मात्रा तथा उसके भंडारण की वर्तमान स्थिति को लेकर वैज्ञानिक आंकड़े, जल संरक्षण नीतियाँ एवं सरकारी प्रयास एक व्यापक दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं, जहाँ लगभग 1021 मिमी औसत वार्षिक वर्षा होती है, जिससे राज्य में अनुमानित रूप से प्रतिवर्ष लगभग 234.8 बिलियन क्यूबिक मीटर (BCM) वर्षाजल गिरता है (राज्य का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 94,163 वर्ग किलोमीटर को आधार मानकर), लेकिन इसके बावजूद जल संग्रहण क्षमता अत्यंत सीमित है क्योंकि बिहार में जल संचयन की केवल लगभग 10–12% वर्षाजल को ही संरक्षित किया जा रहा है जो कि लगभग 23–28 BCM के बीच है, जबकि शेष 200 BCM से अधिक जल या तो बहकर गंगा एवं उसकी सहायक नदियों में चला जाता है या फिर वाष्पित हो जाता है, इसी को दृष्टिगत रखते हुए बिहार सरकार ने विभिन्न जल संचयन योजनाओं को गति दी है जिनमें ‘जल-जीवन-हरियाली अभियान’ प्रमुख है जिसके तहत वर्ष 2019 से ही राज्य के सभी जिलों में वर्षा जल संचयन को बढ़ावा देने हेतु गांव से लेकर शहरी क्षेत्र तक 8 लाख से अधिक सोख्ता गड्ढे (soak pits), चेक डैम, जल पुनर्भरण कुंड, तालाब गहरीकरण, पुनरुद्धार, वर्षाजल संग्रह टैंक, नालों को जोड़ने की योजना, और छत पर रेन वॉटर हार्वेस्टिंग जैसे उपायों को अपनाया गया है, बिहार सरकार ने ‘अर्बन रेन वाटर हार्वेस्टिंग पॉलिसी’ के अंतर्गत वर्ष 2021 में यह अनिवार्य किया कि जिन भी शहरी भवनों, खासकर फ्लैट/अपार्टमेंट (500 वर्ग मीटर से अधिक भूमि) में निर्माण किया जाएगा, वहां पर रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाना अनिवार्य होगा और यदि ऐसा नहीं किया गया तो संबंधित भवन स्वीकृति या नवीनीकरण को रोका जाएगा, साथ ही ‘बिहार अपार्टमेंट अधिनियम 2011’ में वर्षा जल संग्रहण को भवन निर्माण की पूर्व शर्त बनाया गया है जिसे 2020 में और कठोर किया गया ताकि पटना, गया, मुजफ्फरपुर जैसे शहरों में भूमिगत जल स्तर को रिचार्ज किया जा सके, और ‘बिहार नगरपालिका अधिनियम 2007’ में धारा 210A के अंतर्गत नगर निकायों को यह अधिकार दिया गया कि वे जल संग्रहण संरचनाएं न लगाने पर जुर्माना लगाएं या कनेक्शन रद्द करें, इसी तरह राज्य के ग्रामीण इलाकों में वर्षा जल को खेतों में संरक्षित करने के लिए खेत तालाब योजना, चेक डैम योजना एवं अमृत सरोवर जैसी योजनाओं के तहत अब तक 80,000 से अधिक जल संरचनाएं तैयार की जा चुकी हैं जिससे लगभग 7.8 बिलियन क्यूबिक मीटर (BCM) जल संरक्षित करने की क्षमता तैयार हुई है, वहीं शहरी क्षेत्रों में अब तक 5.6 लाख से अधिक घरों में रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को लागू किया गया है जिससे लगभग 1.2 BCM जल संग्रहित होने की संभावना प्रतिवर्ष बन रही है, कुल मिलाकर 2024 तक बिहार में कुल वर्षाजल के केवल 12% के आसपास ही संरक्षित हो पा रहा है और इसे 2047 तक जल आत्मनिर्भरता के लक्ष्य हेतु 30–35% तक लाने का लक्ष्य रखा गया है, इसके लिए राज्य सरकार ने 5 वर्षों में 15,000 करोड़ रुपये का जल संचयन बजट निर्धारित किया है, साथ ही डिजिटल मॉनिटरिंग हेतु ‘जल संरचना पोर्टल’ विकसित किया गया है जिसमें अब तक 3.2 लाख जल संरचनाओं को जीआईएस मैपिंग के माध्यम से दर्ज किया गया है, राज्य सरकार द्वारा विद्यालयों और कॉलेजों को रेन वाटर हार्वेस्टिंग की प्रयोगशाला के रूप में विकसित किया जा रहा है, जहाँ विद्यार्थी स्वयं वर्षाजल संग्रह करते हैं और जल स्तर का परीक्षण करते हैं, इसी क्रम में सीएम के निर्देश पर राज्य के सभी ब्लॉक और पंचायत भवनों में वर्षा जल संग्रह प्रणाली को अनिवार्य रूप से लागू किया गया है, जिससे स्थानीय स्तर पर पीने के पानी, सिंचाई एवं पर्यावरणीय सुधार में सहयोग मिल रहा है, सरकारी रिपोर्ट के अनुसार पटना जिले में वर्ष 2023 में 34% वर्षा जल का संग्रहण सुनिश्चित हुआ जिससे वहाँ का जलस्तर 40 सेमी तक ऊपर आया, यह एक रिकॉर्ड उपलब्धि थी, वहीं गया में 2024 में 3.6 लाख क्यूबिक मीटर जल संरक्षित हुआ जिससे सूखते कुओं में जल पुनः दिखाई दिया, इसके अतिरिक्त रेलवे स्टेशन, अस्पताल, बस स्टैंड जैसे सार्वजनिक स्थलों पर भी वर्षा जल संचयन को लागू किया जा रहा है और इनके माध्यम से लगभग 0.9 BCM जल संरक्षित हो रहा है, सरकार ने 2022 में एक जल संरचना सर्वेक्षण भी कराया था जिससे यह ज्ञात हुआ कि बिहार में लगभग 45,793 पारंपरिक जल निकाय मौजूद हैं जिनमें यदि वैज्ञानिक तरीकों से जल संग्रहण किया जाए तो अतिरिक्त 20 BCM वर्षाजल का संग्रहण संभव है, लेकिन इसके लिए इन जलाशयों का अतिक्रमणमुक्त कराना, सफाई करना और जलप्रवाह को पुनर्स्थापित करना आवश्यक है, इसी दिशा में राज्य सरकार ने 38 जिलों में ‘पारंपरिक जल संरचना संरक्षण समिति’ का गठन किया है जो ग्राम स्तर पर जलाशयों की स्थिति की निगरानी करती है, बिहार सरकार ने जलवायु परिवर्तन अनुकूलन नीति 2022 में वर्षा जल संग्रहण को कृषि, स्वास्थ्य, नगरीय विकास और उद्योग नीति से जोड़ने की बात कही है ताकि एक समग्र जल नीति विकसित हो सके, इसके अलावा विश्व बैंक, यूएनडीपी तथा नीति आयोग के सहयोग से भी राज्य में जलभंडारण क्षमता को लेकर अध्ययन हो रहे हैं और इन अध्ययनों में बिहार की वर्षाजल क्षमता को जल आत्मनिर्भरता में बदलने के लिए बड़े स्तर पर वृक्षारोपण, भूमि ढलान आधारित संग्रहण, और समुदाय आधारित प्रबंधन की सिफारिश की गई है, अंततः यदि 2047 तक बिहार को जल आत्मनिर्भर बनाना है तो मानसून की हर बूंद को संरक्षित करने हेतु नीतिगत कठोरता, तकनीकी नवाचार, जन सहभागिता और सरकारी निगरानी की एक त्रिस्तरीय रणनीति अपनानी होगी जिससे हर साल गिरने वाले 234 BCM से अधिक वर्षाजल का कम से कम 70–80 BCM संरक्षित किया जा सके और बिहार जल संकट से मुक्त होकर जल समृद्धि की दिशा में अग्रसर हो सके।